बनाई थी आज चाय की प्याली एक,
मिठास कुछ कम सी लगी.
शायद कमी रह गई थी बस एक,
नहीं छु पी थी वो हाथ तुम्हारे.
ख़ुशी थी आज सारा जहाँ पाने की भी,
वो भी कहीं नजर नहीं आ रही,
शायद अब नहीं मिलेगी कभी,
तुम्हारे हाथों की चाय.
पड़ा है एक ख़त तुम्हारा,
अलमारी के अंदर सुरक्षित,
लिखा था जिसपे तुमने-
जीतोगे सारा जहाँ एक दिन.
होंगी खुशियाँ क़दमों तले,
कहाँ तुम जानती थी तब,
के मेरी ख़ुशी तो तुम से शुरू होके
तुम्हारे साथ ही कहीं खो गई.
आज स्मृति के आइने ने,
दिल को कहीं कुरेद सा दिया.
न तुम्हारी वाणी है स्पर्श करने को,
जिसके प्रवाह से चलती थी जिंदगी.
न ही वो ठंडी सांसे तुम्हारी,
बनाती थी जो सुहाना गर्म शामों को.
सर्दियों की सर्द रातें तो,
अब सर्द ही रहती हैं.
आज बस याद मात्र एक साथ है,
उस खुशनुमा वसंत की;
और साथ दे रही है बस,
एक फीकी सी चाय की प्याली.
Paramveer Saini
March,7,2011
मिठास कुछ कम सी लगी.
शायद कमी रह गई थी बस एक,
नहीं छु पी थी वो हाथ तुम्हारे.
ख़ुशी थी आज सारा जहाँ पाने की भी,
वो भी कहीं नजर नहीं आ रही,
शायद अब नहीं मिलेगी कभी,
तुम्हारे हाथों की चाय.
पड़ा है एक ख़त तुम्हारा,
अलमारी के अंदर सुरक्षित,
लिखा था जिसपे तुमने-
जीतोगे सारा जहाँ एक दिन.
होंगी खुशियाँ क़दमों तले,
कहाँ तुम जानती थी तब,
के मेरी ख़ुशी तो तुम से शुरू होके
तुम्हारे साथ ही कहीं खो गई.
आज स्मृति के आइने ने,
दिल को कहीं कुरेद सा दिया.
न तुम्हारी वाणी है स्पर्श करने को,
जिसके प्रवाह से चलती थी जिंदगी.
न ही वो ठंडी सांसे तुम्हारी,
बनाती थी जो सुहाना गर्म शामों को.
सर्दियों की सर्द रातें तो,
अब सर्द ही रहती हैं.
आज बस याद मात्र एक साथ है,
उस खुशनुमा वसंत की;
और साथ दे रही है बस,
एक फीकी सी चाय की प्याली.
Paramveer Saini
March,7,2011
2 comments:
loved it buddy... its superb...it connected to me. really awesome
सुन्दर कविता।
चाय की प्याली में भावनाओं को बखूबी पिरोया आपने।
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श्रीश बेंजवाल, यमुनानगर
http://shrish.in
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