नूर चेहरे पे उसके जीशान सा,
दिखती थी किसी मूरत सी
मन हुआ देख के गुनगुनाने का।
तारीफ को तराशा उनकी,
कोशिश की बहुत।
लेकिन मिट्टी उसकी मेरे जैसी थी नहीं,
टूटी फूटी हिंदी में बोली -
"न आती मुझे समझ ये तारीफ,
क्या शब्दों से कुश्ती खेलते हो!
क्या किस्मत सीधी,
मेरे साथ करनी है!
मिलो सुबह पांच बजे,
कबड्डी के मैदान में -
तुमको सीधा करती हूँ।"
Thursday, January 19, 2017
स्पोर्ट्स गर्ल
तो क्या करोगे
जब शहर में तुम्हारे, फूल खिलेंगे।
और भँवरे सारे महकेंगे-
खुशबु उनही की लिये।
और दूर किसी गाँव से ठंडी हवा,
गर्माहट को दिल की बुझाएगी।
फिर चाँद झील में झांकेगा,
और चेहरा खुद का वो ताकेगा।
और तुम होँगे बैठे वहाँ,
बस पैर डुबोये पानी में।
तो क्या करोगे?
जब फूल कोई एक भँवरे को,
नशे से पूरा भर देगा।
गुलामी वो खुशबुओं की,
फिर करता ही जायेगा।
जीता हुआ भी मरता सा जायेगा।
और पुरे शहर की गर्माहट,
दुल में तुम्हारे जब होगी।
फिर चाँद सी तुम-
चांदनी को झील में देखोगी।
और में बैठा होऊंगा,
पैर डुबोये पानी में।
तो क्या करोगे!
Saturday, January 14, 2017
पल, एक ख़ुशी
ख़ुशी तो एक ख्याल है,
क्यों कोई पीछा करे इसका,
ये जो पल है अभी,
बस यही ख़ुशी है।
जी जाओ इसको,
जशन इसका मना लो,
और पी जाओ इसको।
मुद्दे को किसी पकड़ो,
जकड लो इस पल में उसको।
लकीर के फ़कीर हैं बाकी,
तुम लकीर नई बनाओ-
खुद ही।
और चल पड़ो उस पर।
खो जाओ मकसद पाने में,
और जी जाओ इस पल को।
फिर घर छूटे, या सब रूठें।
तुम बस जीते रहो,
पलों के जाम पीते रहो।
मकसद पूरा हो ही जायेगा,
आज नहीं तो कल,
या फिर उसके बाद-
किसी और पल में...
जिंदगी दिलरुबा है,
पास ही है तुम्हारे।
इसको ख़फ़ा न करो,
आज भी इसको अपनाओ,
और जी जाओ इस पल को,
क्योंकि,
ख़ुशी यही है।
-Distinctly Yours
Paramveer
14.01.2017