नूर चेहरे पे उसके जीशान सा,
दिखती थी किसी मूरत सी
मन हुआ देख के गुनगुनाने का।
तारीफ को तराशा उनकी,
कोशिश की बहुत।
लेकिन मिट्टी उसकी मेरे जैसी थी नहीं,
टूटी फूटी हिंदी में बोली -
"न आती मुझे समझ ये तारीफ,
क्या शब्दों से कुश्ती खेलते हो!
क्या किस्मत सीधी,
मेरे साथ करनी है!
मिलो सुबह पांच बजे,
कबड्डी के मैदान में -
तुमको सीधा करती हूँ।"
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Thursday, January 19, 2017
स्पोर्ट्स गर्ल
Labels:
hindi poetry,
poem
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